Tuesday, July 23, 2019

कारगिल: जब रॉ ने टैप किया जनरल मुशर्रफ़ का फ़ोन..

26 मई 1999 को रात साढ़े नौ बजे भारत के थलसेनाध्यक्ष जनरल वेदप्रकाश मलिक के सेक्योर इंटरनल एक्सचेंज फ़ोन की घंटी बजी. दूसरे छोर पर भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के सचिव अरविंद दवे थे. उन्होंने जनरल मलिक को बताया कि उनके लोगों ने पाकिस्तान के दो चोटी के जनरलों के बीच एक बातचीत को रिकार्ड किया है.

उनमें से एक जनरल बीजिंग से बातचीत में शामिल था. फिर उन्होंने उस बातचीत के अंश पढ़ कर जनरल मलिक को सुनाए और कहा कि इसमें छिपी जानकारी हमारे लिए महत्वपूर्ण हो सकती है.

जनरल मलिक ने उस फोन-कॉल को याद करते हुए बीबीसी को बताया, 'दरअसल दवे ये फ़ोन डायरेक्टर जनरल मिलिट्री इंटेलिजेंस को करना चाहते थे, लेकिन उनके सचिव ने ये फ़ोन ग़ल्ती से मुझे मिला दिया. जब उन्हें पता चला कि डीजीएमआई की जगह मैं फ़ोन पर हूँ तो वो बहुत शर्मिंदा हुए. मैंने उनसे कहा कि वो इस फ़ोन बातचीत की ट्राँस- स्क्रिप्ट तुरंत मुझे भेजें.'

जनरल मलिक ने आगे कहा, 'पूरी ट्रांस- स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद मैंने अरविंद दवे को फ़ोन मिला कर कहा मेरा मानना है कि ये बातचीत जनरल मुशर्रफ़ जो कि इस समय चीन में हैं और एक बहुत सीनियर जनरल के बीच में है. मैंने दवे को सलाह दी कि आप इन टेलिफ़ोन नंबरों की रिकार्डिंग करना जारी रखें, जो कि उन्होंने की.'

जनरल मलिक कहते हैं, ''तीन दिन बाद रॉ ने इन दोनों के बीच एक और बातचीत रिकार्ड की. लेकिन इस बार उसे डायरेक्टर जनरल मिलिट्री इंटेलिंजेंस या मुझसे साझा करने के बजाए उन्होंने ये जानकारी सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को भेज दी. 2 जून को जब मैं प्रधानमंत्री वाजपेई और ब्रजेश मिश्रा के साथ नौसेना के एक समारोह में भाग लेने मुंबई गया तो लौटते समय प्रधानमंत्री ने मुझसे ताज़ा ताज़ा 'इंटरसेप्ट्स' के बारे में पूछा.''

''तब जा कर ब्रजेश मिश्रा को अहसास हुआ कि मैंने तो उन्हें देखा ही नहीं है. वापस लौटते ही उन्होंने इस ग़लती को सुधारा और मुझे इस बातचीत की ट्रांस - स्क्रिप्ट भी भेज दी. ''

ये घटना बताती है कि लड़ाई के समय भी हमारा ख़ुफ़ियातंत्र जानकारियों को सबके साथ न बाँट कर चोटी के चुनिंदा लोगों तक पहुंचा रहा था ताकि 'टर्फ़ वॉर' में उनका दबदबा रहे.

1 जून तक प्रधानमंत्री वाजपेई और सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति को ये टेप सुनवाए जा चुके थे.

4 जून को भारत ने इन टेपों को उनकी ट्राँस - स्क्रिप्ट के साथ प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को सुनवाने का फ़ैसला किया. अगर मुशर्ऱफ़ की बातचीत को रिकार्ड करना भारतीय इंटेलिजेंस के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी, तो उन टेपों को नवाज़ शरीफ़ तक पहुंचाना भी कम बड़ा काम नहीं था.

सवाल उठा कि इन संवेदनशील टेपों को ले कर कौन इस्लामाबाद जाएगा?

भारतीय संपर्क सूत्रों की गुप्त इस्लामाबाद यात्रा
एक सूत्र ने नाम न लिए जाने की शर्त पर बताया कि इसके लिए मशहूर पत्रकार आर के मिश्रा को चुना गया, जो उस समय आस्ट्रेलिया गए हुए थे. उन्हें भारत बुला कर ये ज़िम्मेदारी दी गई.

इस डर से कि कहीं इस्लामाबाद हवाई अड्डे पर उनकी तलाशी न ले ली जाए, उन्हें 'डिप्लोमैट' का दर्जा दिया गया ताकि उन्हें 'डिप्लोमैटिक इम्म्यूनिटी' मिल सके.

उनके साथ भारतीय विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव विवेक काटजू भी गए.

आर के मिश्रा ने सुबह साढ़े आठ बजे नाश्ते के समय नवाज़ शरीफ़ से मुलाकात कर उन्हें वो टेप सुनवाया और उसकी ट्रांस - स्क्रिप्ट उनके हवाले की.

मिश्रा और काटजू उसी शाम ये काम पूरा कर दिल्ली वापस आ गए. इस यात्रा को इतना गुप्त रखा गया कि कम से कम उस समय इसकी कहीं चर्चा नहीं हुई.

सिर्फ़ कोलकाता से छपने वाले अख़बार 'टेलिग्राफ़' ने अपने 4 जुलाई 1999 के अंक में प्रणय शर्मा की एक रिपोर्ट छापी जिसका शीर्षक था, 'डेल्ही हिट्स शरीफ़ विद आर्मी टेप टॉक.'

इस रिपोर्ट में बताया गया कि भारत ने इस टेप को नवाज़ शरीफ़ को सुनाने के लिए विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव विवेक काटजू को इस्लामाबाद भेजा था.

रॉ के पूर्व अतिरिक्त सचिव बी रमण ने 22 जून 2007 को आउटलुक पत्रिका में लिखे एक लेख 'रिलीज़ ऑफ़ कारगिल टेप मास्टरपीस ऑर ब्लंडर ?' में साफ़ कहा कि नवाज़ शरीफ़ को टेप सुनाने वालों को साफ़ निर्देश थे कि वो उस टेप को उन्हें सुना कर वापस ले आएं. उन्हें उनके हवाले न करें.

मिश्रा ने बाद में इस बात का खंडन किया कि उन्होंने ये काम किया था. विवेक काटजू ने भी कभी सार्वजनिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं की.

इस सबके पीछे भारतीय ख़ेमे जिसमें रॉ के सचिव अरविंद दवे, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा और जसवंत सिंह शामिल थे, की सोच ये थी कि इन सबूतों से दो चार होने और इस आशंका के बाद कि भारत के पास इस तरह के और टेप हो सकते हैं, कारगिल पर पाकिस्तानी नेतृत्व और दबाव में आएगा.

इन टेपों के नवाज़ शरीफ़ द्वारा सुन लिए जाने के करीब एक हफ़्ते बाद 11 जून, 1999 को विदेश मंत्री सरताज अज़ीज़ की भारत यात्रा से कुछ पहले भारत ने एक संवाददाता सम्मेलन कर इन टेपों को सार्वजनिक कर दिया.

इन टेपों की सैकड़ों कापियाँ बनवाई गई और दिल्ली स्थित हर विदेशी दूतावास को भेजी गईं.

भारतीय ख़ुफ़िया समुदाय के लोग अभी भी ये बताने में कतराते हैं कि उन्होंने इस काम को कैसे अंजाम दिया?

पाकिस्तानियों का मानना है कि इस काम में या तो सीआईए या फिर मोसाद ने भारत की मदद की. जिन्होंने इन टेपों को सुना है उनका मानना है कि इस्लामाबाद की तरफ़ की आवाज़ ज्यादा साफ़ थी, इसलिए संभवत: इसका स्रोत इस्लामाबाद रहा होगा.कारगिल पर बहुचर्चित किताब 'फ़्रॉम कारगिल टू द कू 'लिखने वाली पाकिस्तानी पत्रकार नसीम ज़ेहरा अपनी किताब में लिखती हैं,' अपने चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टॉफ़ से इतनी संवेदनशील बातचीत खुले फ़ोन पर करके जनरल मुशर्रफ़ ने ये सबूत दिया कि वो किस हद तक लापरवाह हो सकते हैं. इस बातचीत ने सार्वजनिक रूप से ये सिद्ध कर दिया कि कारगिल ऑप्रेशन में पाकिस्तान के चोटी के नेतृत्व का किस हद तक हाथ है.'

दिलचस्प बात ये है कि अपनी बेबाक आत्मकथा 'इन द लाइन ऑफ़ फ़ायर' में परवेज़ मुशर्रफ़ इस घटना से साफ़ कन्नी काट गए और इस बातचीत का कोई ज़िक्र ही नहीं किया हाँलाकि बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में भारतीय पत्रकार एम जे अकबर को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने इन टेपों की असलियत को स्वीकार किया.

सरताज अज़ीज़ का दिल्ली में ठंडा स्वागत
इन टेपों को नवाज़ शरीफ़ के सुनवाए जाने के करीब 1 सप्ताह बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अज़ीज़ दिल्ली पहुंचे तो पाकिस्तानी उच्चायोग के प्रेस काउंसलर बहुत परेशान मुद्रा में दिल्ली हवाई अड्डे के वीआई पी लाउंज में उनका इंतज़ार कर रहे थे.

उनके हाथ में कम से कम छह भारतीय समाचार पत्र थे जिसमें मुशर्रफ़ अज़ीज बातचीत को हेडलाइन में छापा गया था. जसवंत सिंह ने अज़ीज़ से बहुत ठंडे ढंग से हाथ मिलाया.

इन टेपों से दुनिया और ख़ास तौर से भारत में ये धारणा मज़बूत हुई कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का कारगिल संकट में सीधा हाथ नहीं है और उनको सेना ने कारगिल अभियान की जानकारी से महरूम रखा है.

टेपों को सार्वजनिक करने की आलोचना
भारत के ख़ुफ़िया हल्कों में कुछ जगह इन टेपों को सार्वजनिक करने की आलोचना भी हुई.

रॉ के अतिरिक्त सचिव रहे और उस पर चर्चित किताब 'इंडियाज़ एक्सटर्नल इंटेलिजेंस - सीक्रेटेल ऑफ़ रिसर्च एंड अनालिसिस विंग' लिखने वाले मेजर जनरल वी के सिंह ने बीबीसी को बताया, 'ये पता नहीं है कि इन टेपों को सार्वजनिक कर भारत को अमरीका और संयुक्त राष्ट्र से कितने 'ब्राउनी प्वाएंटस' मिले, लेकिन ये ज़रूर है कि पाकिस्तान को इसके बाद इस्लामाबाद और बीजिंग के उस ख़ास उपग्रह लिंक का पता चल गया, जिस को रॉ ने 'इंटरसेप्ट' किया था. इसको उसने तुरंत बंद कर दिया.. इसका अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है कि अगर वो 'लिंक' जारी रहता, तो हमें उसके बाद भी कितनी और महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिली होतीं.'

No comments:

Post a Comment

隐瞒病症致3人感染114人隔离 浙江一男子被移送起诉

  中新网台州4月10日电 欧盟财长们已 色情性&肛交集合 同意向遭受新冠 色情性&肛交集合 病毒大流行打击的欧洲国家提供 色情性&肛交集合 5000亿欧元 色情性&肛交集合 (4400亿英镑;  色情性&肛交集合 5460亿美元) 色情性&肛交集合 的救助。 法国财 色情...