Thursday, January 17, 2019

वो देश जिसकी पहचान है- कम्पीटिशन

माल्टा की राजधानी वैलेटा की गलियों में निकल जाएं, तो हर शख़्स दूसरे से होड़ लगाता मालूम होगा. माल्टा की संस्कृति की इस ख़ूबी को 'पीका' कहते हैं. माल्टा की ज़बान के इस शब्द का मतलब है पड़ोसी से प्रतिद्वंदिता. ये पीका शब्द ही माल्टा की जीवनशैली की बुनियाद है.

भूमध्य सागर के क़रीब स्थित छोटे से देश माल्टा ने अपने लंबे इतिहास में उथल-पुथल के कई दौर देखे हैं. कभी ये अरबों के अधीन रहा, तो कभी यूरोपीय तानाशाहों के. कभी इस्लाम के असर से प्रभावित हुआ तो कभी माल्टा ईसाई धर्म प्रचारकों के आगोश में.

तमाम उतार-चढ़ावों में अगर कभी ख़त्म नहीं हुई, तो वो थी माल्टा के लोगों की पीका यानी एक-दूसरे से होड़ लगाने की भावना.

माल्टा यूनिवर्सिटी में विरासत और सांस्कृतिक पर्यटन के प्रोफ़ेसर जॉर्ज कसार कहते हैं, 'पीका वो भावना है, जो माल्टा के लोगों को अपने क़रीबी लोगों को पछाड़ने के लिए प्रेरित करती है.'

माल्टा में ये परंपरा आम तौर पर दो अलग-अलग कुल गुरुओं या संतों के अनुयायियों के बीच होड़ के तौर पर पलती आई है.

इसे ऐसे समझें कि कोई कबीर का भक्त है, तो कोई संत रविदास का और दोनों के भक्त ख़ुद को बेहतर दिखाने की होड़ लगाते हैं.

माल्टा में हर मुहल्ले के अलग संत या कुल गुरू होते हैं. यहां पर संतों को पूजने की परंपरा को त्यौहार के तौर पर मनाया जाता है. इस दौरान सजावट से लेकर जश्न के दूसरे पहलुओं में आगे निकलने की होड़ लगती है. कई बार तो ये मुक़ाबला इतना आक्रामक हो जाता है कि बात गाली-गलौज और हिंसा तक जा पहुंचती है.

जॉर्ज कसार कहते हैं कि पीका की भावना के चलते ही माल्टा के लोगों ने राजधानी वेलेटा में 1958 में एक पुराने गिरजाघर कार्मेलाइट बैसिलिका को ध्वस्त करके उसकी जगह चर्च की और ज़्यादा शानदार इमारत बनाई थी, ताकि पड़ोस में स्थित एंग्लिकन कैथेड्रल को नीचा दिखा सकें.

इसी होड़ का नतीजा था कि पिछले साल अगस्त में एक परेड के दौरान एक शख़्स के सिर पर किसी ने गमला दे मारा था. इसी घटना के दो हफ़्ते बाद ही एक और परेड के दौरान दो पादरियों ने एक-दूसरे को जमकर भद्दी-भद्दी गालियां दी थीं. बात सिर्फ़ इतनी थी कि जश्न के दौरान सजाई गई वर्जिन मेरी की अपनी-अपनी मूर्तियों को दोनों पादरी बेहतर और दूसरे को पूरे माल्टा में सबसे बदसूरत बता रहे थे.

हर साल माल्टा में फेस्टा सीज़न आता है. जब हर गांव अपने कुल गुरू की याद में जश्न आयोजित करता है. फेस्टा सीज़न जून से सितंबर के बीच आता है. इस दौरान माल्टा के लोगों का भूमध्य सागरीय गर्म ख़ून बहुत उबाल मारता है. जश्न के दौरान दूसरों को नीचा दिखाने के लिए गाली-गलौज तक हो जाती है. 2004 में तो हालात इतने बिगड़ गए थे कि फेस्टा सीज़न को रद्द करना पड़ा था, ताकि हिंसा न भड़के.

साल दर साल हर संत के अनुयायी जश्न में ख़ुद को बेहतर साबित करने के लिए ख़ूब पैसे बहाते हैं. ये परंपरा मध्यकालीन है और येरूशलम से आए कैथोलिक योद्धाओं 'नाइट्स हॉस्पिटालर' के साथ माल्टा पहुंची थी. इन योद्धाओं ने माल्टा पर 1530 से लेकर अगली तीन सदी तक राज किया था.

फेस्टा के दौरान झंडे लहराए जाते हैं. हाथ से बनी कलाकृतियों की नुमाइश की जाती है. भोज होता है. गहनों की प्रदर्शनी होती है.

माल्टा के अलग-अलग क़स्बों के बीच फेस्टा सीज़न में ज़बरदस्त मुक़ाबला होता है.

ऐसा ही एक क़स्बा है क़ूर्मी. इसके बाशिंदे सेंट जॉर्ज और सेंट सेबैस्टियन के अनुयायियों में बंटे हुए हैं. दोनों के बीच फेस्टा सीज़न में आगे निकलने की ख़ूब होड़ लगती है.

माल्टा में संतों को मानने की परंपरा मध्य काल से शुरू हुई थी. यहां की संस्कृति पर अरबों की छाप भी साफ़ दिखती है. इसीलिए यहां की ज़बान में अरबी शब्द ख़ूब मिलते हैं. लेकिन, माल्टा हमेशा से ही ख़ुद को यूरोपीय देश होने का दावा करता आया है. यहां पर रोमन कैथोलिक चर्च ही हावी है.

प्रोफ़ेसर जॉर्ज कसार कहते हैं कि पीका की भावना भूमध्य सागर की परंपरा का हिस्सा है. स्पेन और इटली में भी त्यौहारों के दौरान होड़ लगती है.

इटली के सिसिली द्वीप में भी गांवों के बीच ये प्रतिद्वंदिता देखने को मिलती है.

फेस्टा सीज़न के दौरान निकलने वाली परेड में संगीत के बैंड गाते-बजाते निकलते हैं. इन्हें भी एक-दूसरे से बेहतर साबित करने का मुक़ाबला होता है.

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